टैगोर के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धांत-
1.प्रकृति की गोद में शिक्षा- बालकों की शिक्षा नगरों से दूर प्रकृति के वातावरण में होनी चाहिए परी के साथ संपर्क स्थापित करने में बालों को आनंद का अनुभव होता है
2.शिक्षा में स्वतंत्रता- टैगोर ने कहा है कि जहां स्वतंत्रता नहीं और जहां विकास नहीं वहां जीवन नहीं है इसलिए प्राप्त करते समय वालों को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए उस पर कम से कम प्रतिबंध लगाने चाहिए विद्यालय को चाहिए कि वह भाड़ को को विभिन्न क्रियाओं को करने के लिए स्वतंत्र वातावरण प्रस्तुत करें स्वतंत्रता तथा प्रसन्नता के द्वारा अनुभव की पूर्णता टैगोर की आदर्श शिक्षा का हृदय और आत्मा है
3.मनुष्य की पूर्णता की शिक्षा-टैगोर ने लिखा है वास्तव में मानव जातिय में संभावित अंतर होते हैं जिन्हें सुरक्षित रखना चाहिए और सम्मानित करना है और शिक्षा का कार्टून अंतर क होते हुए भी एकता की अनुभूति कराना है विषमताओं के होते हुए भी और समय के बीच सत्य को खोजना है"मुखर्जी ने कहा है कि इन एकता के सिद्धांतों को दूसरे दृष्टिकोण से देखने पर टैगोर ने उसे पूर्णता के सिद्धांत में बदला है इन्होंने शरीर की शिक्षा बुद्धि की शिक्षा आत्मा की शिक्षा और तथा आत्माभिव्यक्ति की शिक्षा में जो एकता स्थापित की है उसके द्वारा मनुष्यत्व की पूर्णता के लिए प्रयत्न किया है।
4.शिक्षा का माध्यम मातृभाषा-टैगोर ने कहा है कि कोई भी राष्ट्र सर्वोत्तम शिक्षा केवल अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही दे सकता है विदेशी भाषा से चिंतन मूल्यों की प्राप्ति नहीं होती है भाव प्रकाशन में बाधा पड़ती है और मौलिकता को प्रकट करने में कठिनाई होती है। इन्होने अंग्रेजी का विरोध नही किया अपितु उसे मातृभाषा के पूरक के रूप में पढाने के लिए कहा है।
5.बालक का चहुँमखी और सामाजस्यपूर्ण विकास-शिक्षा के द्वारा भक्ति के सभी जनरल शक्तियों का विकास करके उसमें व्यक्तिगत और चाहूंगी असमंजस पूर्ण विकास किया जाना चाहिए
6.राष्ट्रीय शिक्षा-टैगोर ने कहा है कि बालकों की शिक्षा राष्ट्रीय होनी चाहिए उसमें भारत के अतीत और भविष्य की पूर्ण ध्यान रखा जाना चाहिए
7.भारतीय संस्कृति की शिक्षा-बालकों की शिक्षा के द्वारा भारतीय समाज की पृष्ठभूमि और भारतीय संस्कृति का स्पष्ट ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिए
8.कलात्मक शक्तियों का विकास-शिक्षा के द्वारा बालकों में संगीत अभिनय और चित्रकला की योग्यताओं का विकास किया जाना चाहिए
9.सामुदायिक जीवन की शिक्षा-टैगोर ने कहा है कि शिक्षा की गतिशील एवं सुजीत अभी बनाया जा सकता है जबकि उसका आधार व्यापक हो और उसका समुदाय के जीवन से घनिष्ठ संबंध बालकों को सामाजिक सेवा के अवसर मिलने चाहिए उसमें उनके स्वयं शासन तथा उत्तरदायित्व की भावना विकसित हो सके
10.प्रत्यक्ष स्त्रोतो सें ज्ञान- टैगोर ने कहा है कि पुस्तक के स्थान पर जहां तक संभव हो सके बालको को प्रत्यक्ष स्रोतों के साथ ज्ञान प्रदान करने का अवसर दिया जाना चाहिए
11.रचनात्मक प्रवृत्तियों का विकास-शिक्षा के द्वारा बालकों को इस प्रकार के अवसर दिए जाने चाहिए कि वे अपनी रचनात्मक प्रवृत्तियों को विकसित कर सकें
12.सामाजिक आदर्शों की शिक्षा-शिक्षा के द्वारा बालकों को सामाजिक आदर्शों परंपरा रीति-रिवाज और समस्याओं से अवगत कराया जाना चाहिए प्रथम में उसको स्थान मिलना चाहिए
13.स्वतंत्र प्रयास द्वारा शिक्षा-शिक्षा के द्वारा बालकों को इस प्रकार के अवसर दिए जाने चाहिए जिससे कि वह स्वतंत्र प्रयासों द्वारा शिक्षा प्राप्त कर सकें
14. रटने की आदत का अन्त-टैगोर ने कहा है कि बालकों को रटने के लिए बाध्य ना किया जाए किडनी की औरत का अंत किया जाए
15. अन्तर्राष्ट्रीयता की शिक्षा-शिक्षा के द्वारा बालकों में संपूर्ण मानवता का कल्याण करने की भावना को विकसित किया जाना चाहिए