हिंदी के पांच महत्वपूर्ण जीवन परिचय/साहित्य परिचय Class12 Board exam 2023

 हिंदी के पांच महत्वपूर्ण जीवन परिचय/साहित्य परिचय

 अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जी का जीवन/साहित्य परिचय

नाम - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

जन्म - 15 अप्रैल 1865 ई
जन्म स्थान - निजामाबाद जिला आजमगढ़ उत्तर प्रदेश 
 पिता का नाम - भोला सिंह उपाध्याय
 माता का  नाम - रुकमणी देवी
मृत्यु - 06 मार्च 1947 ई

जीवन परिचय -

योध्या सिंह उपाध्याय जी का जन्म 15 अप्रैल 1865 ई में निजामाबाद जिला आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम भोला सिंह उपाध्याय तथा माता का नाम रुकमणी देवी था।
 5 वर्ष की आयु में फारसी माध्यम से इनकी शिक्षा प्रारंभ हुई वनकुयलर मिडिल पास करके यह क्विज कॉलेज बनारस में अंग्रेजी पढ़ने गए। पर अस्वस्थता  के कारण इन्हें अध्ययन छोड़ना पड़ा। इन्होंने स्वाध्याय से हिंदी, संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी भाषा में अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। इन्होंने निजामाबाद के मिडिल स्कूल के अध्यापक तथा कानूनगो और काशी विश्वविद्यालय में अवैधानिक शिक्षक के पद पर कार्य किया। इनकी रचना 'प्रियप्रवास' पर इन हिंदी का सर्वोच्च नमस्कार मंगल प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया। 6 मार्च सल 1947 ईस्वी में इनका देवासन हो गया।

साहित्यिक परिचय-

 प्रारंभ में  उपाध्याय जी ब्रजभाषा में रचना किया करते थे। परंतु बाद में महावीर प्रसाद द्विवेदी से प्रेरणा पाकर खड़ी बोली हिंदी में काव्य रचना करने लगे। इन्होंने शब्दालंकार अर्थालंकार दोनों में भरपूर रचनाएं की इनकी काव्य में उपमा के अतिरिक्त रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेश, मरण, प्रतीक आदि अलंकार की भाव मिलते हैं।
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काव्य रचनाएं -

कहानी-

प्रियप्रवास, परिजात, वैदेही वनवास ।

उपन्यास-

 हिंदी का ठाठ ।

                                                                   


 

वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जीवन/साहित्यिक परिचय

 नाम - वासुदेव शरण अग्रवाल
जन्म सन 1904 ई.
 जन्म स्थान - मेरठ जिले के खेड़ा नामक ग्राम में 
 उपाधि - पी.एच.डी. , डी लिट
 मृत्यु सन 1967 ई.
 शिक्षा- एम.ए.

 जीवन परिचय-



भारतीय संस्कृति और पुरातत्व के विद्वान वासुदेव शरण अग्रवाल जी का जन्म 1904 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के खेड़ा नामक ग्राम में हुआ था यह प्रतिष्ठि वैश्य परिवार से थे इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक किया, फिर इन्होंने सन 1929 ईस्वी में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. किया फिर मथुरा के पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष पद में रहे। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से सन 1941 ईस्वी में पी.एच.डी. तथा सन 1946 ईस्वी में डी लिट की उपाधि प्राप्त की

 सन 1946 ईस्वी  से लेकर सन 1951 ईस्वी  तक सेंट्रल एशिया एंटीक्विटीज म्यूजियम के सुपरिटेंडेंट और भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य सफलतापूर्वक किया सन 1951 ईसवी  में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ एंड्रोलॉजी (भारतीय महाविद्यालय) में प्रोफेसर नियुक्त हुए इनके व्याख्यान का विषय "पणीनी" था

 अग्रवाल जी भारतीय मुद्रा कोष परिषद -नागपुर, भारतीय संग्रहालय परिषद -पटना तथा ऑल इंडिया ओरिएंटल कांग्रेश, आदि संस्थानों के सभापति पद पर भी रह चुके हैं इन्होंने  पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी, आदि भाषाओं में अच्छा ज्ञान हासिल किया तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति और पुरातत्व का गहन अध्ययन किया सन 1967 ईस्वी में इन्होंने साहित्य की दुनिया से अलविदा ले लिया

साहित्यिक परिचय-

अग्रवाल जी हिंदी साहित्य में निबंधकार के रूप में प्रसिद्ध थे। अग्रवाल जी ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य के विकास में गुजारा था इन्होंने अपनी रचनाएं खड़ी बोली में की हैं इनकी भाषा सरल सुबोध तथा शैली विचार प्रधान है| इन्होंने कई हिंदी पुस्तकों को संस्कृत में अनुवाद किया है इन्होंने प्राचीन महापुरुषों जैसे- श्री कृष्ण वाल्मीकि मनु आदि की आधुनिक दृष्टिकोण से बुद्धि संगत चरित्र चित्रण किया है

कृतियां-

डॉ अग्रवाल ने निबंध रचना शोक और संपादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-

1. निबंध संग्रह- पृथ्वी पुत्र, कल्पवृक्ष, कला और संस्कृति, मातृभूमि, भारत की एकता , आदि
2. संपादक-  पद्मावत की संजीवनी व्याख्या, बाणभट्ट की हर्ष चरित्र का संस्कृत अध्ययन, आदि
3. शोक - परिणी कालीन भारत

प्रसिद्ध पुस्तकें- कला और संस्कृति, भारत सावित्री,  कादंबरी, आदि

 भाषा शैली-

 खड़ी सरल, सुबोध तथा विचार प्रधान है

                                                                   

 प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी जी का जीवन परिचय

 नाम- जी सुंदर रेड्डी

जन्म- सन 1919 ईसवी 
जन्म स्थान-  आंध्र प्रदेश 
मृत्यु- सन 2005 ईसवी

जीवन परिचय-

प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी जी का जन्म सन 1919 ईस्वी में आंध्र प्रदेश में हुआ था। यह श्रेष्ठ विचारक समालोचक एव  निबंधकार थे इनका व्यक्तित्व और कृतित्व अत्यंत प्रभावशाली है। कई वर्षो तक ये आंध्र विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे है। ये  वहां के स्नातकोतर  अध्ययन  एव अनुसंधान विभाग के अध्यक्ष एवं प्रोफेसर भी रहे है। इनके निर्देशन में हिंदी और तेलुगु साहित्य के विविध प्रश्नों के तुलनात्मक अध्ययन पर शोध किया। इनका निधन 2005 में हो गया।

साहित्यिक परिचय-

 श्रेष्ठ विचारक, समालोचक, सशक्त निबंधकार, हिंदी और दक्षिण की भाषाओं में मैत्री-भाव के लिए प्रयत्नसील, मानवतावादी दृष्टिकोण के पक्षपाती प्रोफेसर जी सुंदर रेड्डी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली है। यह  हिंदी की प्रखंड विद्वान है। ऐसे प्रदेश से आने के बावजूद इनका हिंदी में अच्छा ज्ञान था । इन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
इनके रचनाओं में विचारों की परिपक्वता तत्वों की सत्यता की व्याख्या एवं विषय संबंधी स्पष्ट दिखाई देती है।

कृतियां-

जी सुंदर रेड्डी की अब तक आठ ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी रचनाओं से साहित्यिक संसार परिचित है।
 जो निम्न है-
  1. साहित्य और समाज ।
  2. मेरा विचार ।
  3.  हिंदू और तेलुगू: एक तुलनात्मक अध्ययन ।
  4.  दक्षिण की भाषाएं और उनका साहित्य ।
  5.  वैचारिकी ।
  6. शोध और बोध ।
  7.  तेलुगू ।
  8.  लैंग्वेज प्रॉब्लम इन इंडिया ।
 इसके अतिरिक्त इनकी हिंदू, तेलुगु तथा अंग्रेजी पत्र पत्रिका में इनके अनेक निबंध प्रकाशित हुए हैं। इनके  प्रत्येक निबंध मानवतावादी दृष्टिकोण को प्रदर्शित करते हैं।

भाषा शैली-

इनकी भाषा शुद्ध साहित्य खड़ी बोली है। जिसमें सरलता और स्पष्टता का गुण है। इसमें संस्कृत के तत्सम शब्द के साथ उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी भाषा के अनेक शब्दों का प्रयोग किया गया है। इन्होंने अपनी भाषा प्रभावशाली बनाने के लिए मुहावरे और लोकोक्तियां का प्रयोग किया है। इन्होंने प्राया: व्याख्यात्मक, विचारात्मक, समीक्षात्मक, चित्रात्मक तथा रचनात्मक आदि शैली का प्रयोग अपने साहित्य किया।
                                                                   


आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन/साहित्यिक परिचय

नाम - आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

जन्म -  वर्ष 1907 में
जन्म स्थान - बलिया जिले के ''दुबे का छपरा'' नामक गांव
पिता का नाम - अनमोल द्विवेदी
माता का नाम - ज्योतिषमति 
बचपन का नाम - वैधनाथ द्विवेदी
मृत्यु - 18 मई सन 1979


जीवन परिचय -

हिंदी के श्रेष्ठ निबंधकार, उपन्यासकार, आलोचक एवं भारतीय संस्कृति के विख्यात कवि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म वर्ष 1907 में बलिया जिले के  ''दुबे का छपरा'' नामक गांव के एक प्रतिष्ठित सरयूपारी ब्राह्मण-कुल में हुआ था। इनके पिता जी का नाम अनमोल द्विवेदी था। माता ज्योतिषमति थी। जो प्रसिद्व पंडित कुल की कन्या थी। इस प्रकार बालक हजारी प्रसाद को संस्कृत और ज्योतिष की विद्या इन्हें उत्तराधिकार में मिली थी। सन 1930 ईस्वी में इन्होंने काशी हिंदी विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की, इसके बाद वर्ष 1940 से वर्ष 1950 तक जी शांतिनिकेतन में हिंदी भवन के निर्देशक के रूप में रहे।
 इनसे इनके विस्तृत विस्तृत स्वाध्याय और सज्जन का शिलान्यास हुआ। सन 1949 में लखनऊ विश्वविद्यालय ने इन्हें डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया। सन 1950 मे यह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए। वर्ष 1960 से वर्ष 1966 तक पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिंदी विभाग अध्यक्ष बने। इन्हें सन 1957 में पद्म भूषण की उपाधि से विभूषित किया गया।
 सन 1958  में यह राष्ट्रीय ग्रंथ न्यास के सदस्य बने यह कई वर्षों तक काशी नगरी प्रचारिणी सभा के उपसभापति खोज विभाग के निर्देशक तथा नगरी प्रचारिणी पत्रिका के संपादक रहे। इन्होंने भारत सरकार के सहयोग से हिंदी  विकास में इन्होंने अपना योगदान दिया 18 मई 1979 में इनका निधन हो गया।

साहित्य परिचय-

आधुनिक युग के गद्दाकारों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का महत्वपूर्ण स्थान है हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की कृतियां हिंदी साहित्य की सवस्वत निधि हैं उनके निबंधों आलोचनात्मकओ  में कोटि की विकासात्मक क्षमता के दर्शन होते हैं।


                                                                   


मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन/साहित्य परिचय

 नाम -  मैथिलीशरण गुप्त
जन्म-  3 अगस्त 1886
जन्म  स्थान -   झांसी जिला चिरगांव नामक स्थान
पिता का नाम- सेठ रामचरण गुप्ता 
उपाधि-  राष्ट्रकवि 
पुरस्कार-  पद्मश्री, मंगल प्रसाद पारितोषिक 
मृत्यु -  12 दिसंबर 1964

जीवन परिचय -

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म झांसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर 3 अगस्त सन 1886 ई में हुआ था।  इनके पिता सेठ रामचरण गुप्ता जी थे। इनके पिता का साहित्य से विशेष प्रेम था। गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ा घर पर ही इन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी का अध्ययन किया। इनकी प्रारंभिक रचनाएं कोलकाता से प्रकाशित होने वाली  "वेश्योपकारक नामक" पत्रिका में छपी थी। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के संपर्क में आने पर उनके आदेश उपदेश इन स्नेहमेय परामर्श से इनके काव्य में पर्याप्त निखार आया। द्विवेदी जी को यह अपने गुरु मानने लगे थे ।

 इन्हीं कविता मे  देश भक्ति एवं राष्ट्री प्रेम  की व्याख्या प्रमुख होने के कारण महात्मा गांधी ने इन्हें "राष्ट्रकवि" की उपाधि दी। साकेत महाकाव्य के लिए इन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा "मंगल प्रसाद परितोष" पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार द्वारा इनके कार्य को देखते हुए इन्हें "पद्मभूषण" से सम्मानित किया  12 दिसंबर सन 1964 को मां भारती के ये सपूत हमेशा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गया। परंतु इनके कव्य के कारण इन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।


साहित्य परिचय

मैथिलीशरण गुप्त जी की राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत रचनाओ के कारण हिंदी साहित्य में इनका अपना विशेष योगदान था। इन्होंने भारत की कूदशा की वियख्या अपनी महा काव्य संग्रह भारत भारती में किया। गुप्त जी खड़ी बोली के स्वरूप के निर्धारण एवं विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। 

यह आधुनिक हिंदी काव्य की धारा के साथ विकास-पथ पर चलते हुए युग प्रतिनिधि कवि स्वीकार किए गए। हिंदी काव्य राष्ट्रीय भाव की पुनीत गंगा को बहाने का श्रेय गुप्त जी को जाता है। अतः ये सच्चे अर्थ में लोगों में राष्ट्रीय भावनाओं को जन जागरण लाने वाले सच्चे राष्ट्र कवि हैं। इन्हे नारी के प्रति को हृदय सहानुभूति और कारणों से आप्लावित थे। गुप्त जी ने चरित कल्पना में कहीं भी लैंगिकता के लिए स्थान नहीं है। इनके सरे चरित मानव है।

 कृतियां -

गुप्त जी लगभग 40 मौलिक काव्य ग्रंथ में-
  1. भारत-भारती
  2.  किसान
  3. चंद्रहास
  4. अनंध
  5.  द्वापर
  6. यशोधरा
  7.  साकेत
  8.  पंचवटी
  9.  काबा और कर्बला, आदि है

 

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