पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत-
जीन पियाजे स्विजरलैंड के एक मनोवैज्ञानिक थे।बालकों में वृद्धि और विकास किस ढंग से होता है।यह जानने के लिए इन्होंने अपने स्वयं के बच्चों को अपनी खोज का विषय बनाया।बच्चे जैसे जैसे बड़े होते गए उनके मानसिक विकास संबंधित क्रियाएं का वह बड़ी बारीकी से अध्ययन करते रहे।इस अध्ययन के परिणाम स्वरूप उन्होंने जिस विचार का प्रतिपादन किया उन्हें जीन पियाजे के मानसिक या संज्ञानात्मक विकास के नाम से जाना जाता है।
पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक कार्यविधि की दो विशेषताएं बताई है।
- संगठन
- अनुकूलन
- संगठन- संगठन से तात्पर्य प्रत्यक्षी की बौद्धिक सूचनाओं के सार्थक पैटर्न को व्यवस्थित करने से हैं।प्रत्येक व्यक्ति अपनी बौद्धिक सूचनाओं का निर्माण स्वयं करता है।जो वातावरण के साथ समायोजन करके उसके ज्ञान तथा कार्यों को संगठित करती है।
- अनुकूलन-अनुकूलन से तात्पर्य पूर्व ज्ञान और नवीन ज्ञान के मध्य संतुलन बनाना है,
अनुकूलन को दो भागों में बांटा गया है
- आत्मसातीकरण
- विशिष्ठीकरण
- आत्मसातीकरण-आत्मसातीकरण से तात्पर्य नवीन अनुभव को पूर्व निर्मित बौद्धिक संरचना में व्यवस्थित करने से हैं।
उदाहरण-एक बालक को ऐसे त्रिभुज का ज्ञान है,जिसकी तीन भुजाएं समान है।यदि ऐसी भुजा को देखता है। जिसकी तीनों भुजाएं बराबर नहीं है।तो उसे इस प्रकार आत्मसात करता है।इस संबंध में प्याजे का कहना है।कि बालक नए त्रिभुज की विशेषताओं पर ध्यान देगा जो पुराने में उपस्थित( जैसे तीन कोण एवं तीन भुजाएं) नए त्रिभुज की उन विशेषताओं को पाकर उसे उसी रूप मैं आत्मसात करेगा इससे स्पष्ट है।कि बालक का पुराना अनुभव यथावत रहता है।केवल नवीन अनुभव में परिवर्तन होता है।लेकिन उसे पूर्व अनुभव के आधार पर आत्मसात किया जाता है।
- विशिष्ठीकरण- विष्ठीकरण का तात्पर्य नवीन अनुभव की दृष्टि से पूर्ववती बौद्धिक संरचना में सुधार करने या विस्तार करने से है।यह विद्यमान संरचनाओं को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है।जिसमें नवीन अनुभव तथा ज्ञान को उचित ढंग से व्यवस्थित किया जा सकता है।
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्था में बांटा है
- संवेदी गामक अवस्था
- पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
- मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
- औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था
- संवेदी गामक अवस्था-
- मानसिक विकास का यह चरण जन्म से लेकर 2 वर्ष तक चलता है।इस अवस्था में बालकों की मानसिक किया उनकी इन्द्रियजनित क्रियाओं के रूप में ही संपन्न होते हैं।
- इस अवस्था में बच्चों का प्रकाश के प्रति प्रतिक्रिया और दूसरों को देख कर मुस्कुराना और मां के प्रति संवेदनशील व्यवहार व्यक्त करता है।
- बच्चों के अंदर पहुंचने ,पकड़ने ,चूसने, की सहज क्रियाएं होती हैं, और बाद में अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए इन्हीं क्रियाओं की पूर्ति करता है,
- प्रयास और ऋुटि के माध्यम से बच्चा चीजों को सीखता है,
- लगभग डेढ़ वर्ष की आयु में कुछ करने से पहले उसके बारे में विचार करने लगता है,
- इस काल में बच्चा वस्तुओं को स्थित मानता है,
- भाषा का प्रयोग पहले बालक अनुकरण के लिए करता है ,फिर धीरे-धीरे भाषा का प्रयोग अभिव्यक्ति के लिए करने लगता है,
2.पूर्व संक्रियात्मक अवस्था-मानसिक विकास की अवस्था 2 से 7 वर्ष तक चलती है, इस काल को दो भागों में बांटा गया है,
- पूर्वप्रत्यात्मक काल( 2 -4)
- आन्तप्रग्य चिंतन(4-11)
पूर्वप्रत्यात्मक काल-
- यह अवस्था 2 से लेकर 4 वर्ष तक होती है,
- 2 वर्ष की आयु में वह बड़ों के किसी किसी कार्य में सहयोग करने लगता है,
- बालक दूसरों के साथ खेलने लगता है,
- भाषा विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण समय है,
- इस अवस्था को खोज की अवस्ता कहा गया है,
आन्तप्रग्यचिन्तन-
- आन्तप्रग्य चिंतन का अर्थ है।बिना किसी तार्किक विचार क्रिया को किसी वस्तु या बात को मस्तिष्क के द्वारा तुरंत स्वीकार लेना।
- बच्चों की बात इस पर निर्भर करती है।कि वह प्रत्यक्ष क्या देख रहे हैं।
- किसी परिस्थिति घटना या वस्तु का बोध उसके सर्वाधिक प्रत्यक्ष या स्पष्ट दिखाई देने वाले पक्ष पर निर्भर करता है,
- इस अवस्था अक्षमताओं की पूर्ति बच्चों के अंदर तब हो जाती है।जब उसे संरक्षण की प्राप्ति प्हो जाती है।
3.मूर्त संक्रियात्मक अवस्था-
आत्म केंद्रित प्रवृत्ति कम होने लगती है।
- यह अवस्था 7 से लेकर 12 वर्ष तक चलती है,
- बच्चे इस अवस्था में माप सकते हैं, तोल सकते है गिन सकते है,अंतर कर सकते हैं तथा मूर्त होने पर तुलना भी कर सकते हैं
- इस अवस्था में तीन गुणात्मक मानसिक योग्यता में पर्याप्त निर्गत हासिल हो जाती है
4.औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था-
- यह अवस्था 12 से लेकर 15 वर्ष तक की होती है,
- अमूर्त बातों के संबंध में तार्किक चिंतन की योग्यता विकसित हो जाती है,
- शाब्दिक तथा सांकेतिक अभिव्यक्ति की क्षमता पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है,
- सीखना प्रयास एंव ऋुटि पर आधारित होता है,
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"पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत"
"पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की अवस्था "
Tags:
Psychology