ओर्स्टेड का प्रयोग तथा निष्कर्ष

  ओर्स्टेड का प्रयोग(Oersted's Experiment)-

परिचय (Introduction)- 


सन 1820 में वैज्ञानिक ओर्स्टेड ने अपने प्रयोग से यह सिद्ध किया, कि यदि किसी धारावाहि चालक तार में धारा प्रवाहित कर दी जाए तो उस चालक तार के पास चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है

2.प्रयोग (Experimental Setup)-



ओर्स्टेड ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए एक तार लिया इसका संबंध बैटरी से है, बैटरी का संबंध कुंजी से है


1 Position   पहली स्थिति में कुंजी बंद है अतः तार में धारा प्रवाहित नहीं होगी जिससे पास रखी चुंबकीय सुई में कोई  विच्छेप नहीं होगा

Position-    दूसरी स्थिति में कुंजी खुली है। अतः तार में धारा प्रवाहित होगी जिससे समित रखी चुंबकीय सुई में विच्छेप होने लगता है। सुई का N सिरा धारा की दिशा में विक्षेपित होता है
 
धारा -घड़ी की दिशा में
 सुई का N सिरा - घड़ी की दिशा में

3 position-    तीसरी स्थिति में कुंजी खुली है। अतः तार में धारा प्रवाहित होगी जिससे समित रखी चुंबकीय सुई में विच्छेप होने लगता है। सुई का N सिरा धारा की दिशा में विक्षेपित होता है

धारा -घड़ी की विपरीत दिशा में
 सुई का N सिरा - घड़ी की विपरीत दिशा में

निष्कर्ष-


ओर्स्टेड ने अपने प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला की, किसी धारावाहि चालक ता में धारा प्रवाहित करने पर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है
  1. कंपास को तार से दूर ले जाने पर चुंबकीय क्षेत्र का मन घटता  है
  2.  जब चालक तार में प्रवाहित धारा उत्तर दक्षिण दिशा में होती है तो कैम्पस का उत्तरी ध्रुव पूर्व दिशा में हो जाता है 
  3. चालक तार में धारा प्रवाहित के कारण चालक तार के ऊपर और नीचे की ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा परस्पर विपरीत होती है

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